शनिवार, मई 21, 2011

हाइकु - 5

          तोड़ लेती है 
          टहनियों से फूल 
          स्वार्थी दुनिया . 

          संवाद कर 
          असहमति पर 
          विवाद नहीं .

          करते सभी 
          मर्म पर प्रहार 
          चूकें न कभी .

          हारते सदा 
          ये बादल सूर्य से 
          जिद्द न छोड़ें .

          चांदी काटना 
          सत्ता का मकसद 
          मेरे देश में .

          नेता सेवक 
          चुनावों के दौरान 
          फिर मालिक .

          जीओ तो ऐसे
          न डरना किसी से 
          न ही डराना .

          कितना थोथा 
          बादल का घमंड 
          हवा के आगे .

          आओ बचाएं 
          रिश्तों में गर्माहट 
          प्यार दिलों का .

          पिघलाएगी 
          रिश्तों पे जमी बर्फ 
          प्यार की आंच .

             * * * * * 

9 टिप्‍पणियां:

daanish ने कहा…

अक्षर वाणी
भाव मनभावन
सीधा संवाद ... !

ZEAL ने कहा…

संवाद कर
असहमति पर
विवाद नहीं ....

Wonderful !

.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

गहन अर्थों से परिपूर्ण हाइकू।
बधाई स्वीकार करें।

कविता रावत ने कहा…

पिघलाएगी
रिश्तों पे जमी बर्फ
प्यार की आंच .
...sach pyar mein bahut taakat hoti hai..
bahut sundar haayaku..

बेनामी ने कहा…

जीओ तो ऐसे
न डरना किसी से
न ही डराना .
करते सभी
मर्म पर प्रहार
चूकें न कभी .
bahut khoob....!!

***punam***
"bas yun...hi.."

Kunwar Kusumesh ने कहा…

शिल्प और कथ्य दोनों लिहाज़ से सभी बढ़िया हाइकु.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 31 - 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर !

ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या ?

Unknown ने कहा…

आओ बचाएं
रिश्तों में गर्माहट
प्यार दिलों का .

पिघलाएगी
रिश्तों पे जमी बर्फ
प्यार की आंच .

बहुत ही बढ़िया !
मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion

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