बुधवार, अगस्त 08, 2018

दिल में रहने वाले कब भुलाए जाते हैं

आँखें रोती हैं और ज़ख़्म मुसकराते हैं 
जाने वाले अक्सर बहुत याद आते हैं।

दिन में हमसफ़र बन जाती हैं तन्हाइयाँ 
और रातों को हमें उनके ख़्वाब सताते हैं।

ख़ुद की परछाई में दिखे सूरत उनकी 
दिल में रहने वाले कब भुलाए जाते हैं। 

जिन पर चले थे हम कभी मुसाफ़िर बनके 
यूँ लगे जैसे हमें वो रास्ते पास बुलाते हैं। 

शिकवा करने की हिम्मत भी नहीं होती 
कभी-कभी ख़ुद को इतना बेबस पाते हैं। 

कुछ ऐसी उलझी ज़िंदगी कि समझ न आए 
जीते हैं हम ‘विर्क’ या बस दिन बिताते हैं। 

दिलबागसिंह विर्क 
*****

5 टिप्‍पणियां:

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहतरीन

कविता रावत ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना
बहुत सुन्दर ,..

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना।
गहरे भाव समेटे।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नौ दशक पूर्व का काकोरी काण्ड और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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