tag:blogger.com,1999:blog-3127805122051241213.post8647136266315293032..comments2023-10-17T20:27:18.757+05:30Comments on Sahitya Surbhi: तुझे सोचता है जहन रात - दिनदिलबागसिंह विर्कhttp://www.blogger.com/profile/11756513024249884803noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-3127805122051241213.post-19297095890550713712020-11-22T19:17:32.961+05:302020-11-22T19:17:32.961+05:30बहुत ही सुंदर सृजन सर।बहुत ही सुंदर सृजन सर।अनीता सैनी https://www.blogger.com/profile/04334112582599222981noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3127805122051241213.post-59445940701490735152020-11-22T09:40:34.461+05:302020-11-22T09:40:34.461+05:30बहुत सुंदरबहुत सुंदरAnuradha chauhanhttps://www.blogger.com/profile/14209932935438089017noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3127805122051241213.post-71589003043386370402020-11-22T09:39:46.213+05:302020-11-22T09:39:46.213+05:30सुन्दर। सुन्दर। सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3127805122051241213.post-72088025246277951072020-11-21T15:29:57.161+05:302020-11-21T15:29:57.161+05:30आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020)...आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020) को <a href="http://charchamanch.blogspot.com/" rel="nofollow"> "अन्नदाता हूँ मेहनत की रोटी खाता हूँ" (चर्चा अंक-3893) </a> पर भी होगी। <br />-- <br />सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। <br />-- <br />हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। <br />--<br />सादर...! <br />डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' <br />--डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3127805122051241213.post-70173312891845980332013-11-14T19:28:10.987+05:302013-11-14T19:28:10.987+05:30हर अशआर में एक अलग अनुभूति का एहसास है!
नई पोस्ट ...हर अशआर में एक अलग अनुभूति का एहसास है!<br />नई पोस्ट <a href="http://www.kpk-vichar.blogspot.in/2013/11/blog-post_14.html#links" rel="nofollow"> लोकतंत्र -स्तम्भ</a> कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3127805122051241213.post-17963771498731110052013-11-13T21:20:39.116+05:302013-11-13T21:20:39.116+05:30रोज़मर्रा के रोज़नामचे से दो चार होने की तहरीर है ...रोज़मर्रा के रोज़नामचे से दो चार होने की तहरीर है ये गज़ल। खूब सूरत नसीहत आशीष है ये गज़ल। <br /><br />व्यक्ति और समष्टि एक राष्ट्र एक पूरी शती की पीर समेटे है यह गज़ल। हर अशआर पीर का सांझा अनुभूति तदानुभूति कराता है -<br /><br />मिरे देश की है सियासत बुरी<br />यहाँ बिक रहे हैं कफन रात-दिन ।<br /><br />पुरानी हुई बात तहजीब की<br />बदलने लगा है चलन रात-दिन ।virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.com