सोमवार, अक्तूबर 14, 2024

सांख्य योग ( भाग - 4 )

हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, पंचकूला के वर्ष 2022 के श्रेष्ठ काव्य कृति पुरस्कार से पुरस्कृत पुस्तक 'गीता दोहावली' से 
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प्राप्त हुआ जो वीरगति, बच जाएगी लाज। 
जीता तूने युद्ध जो, भू पर होगा राज ।।25 ।।

स्वर्ग, राज चाहो नहीं, हुआ तुझे है ज्ञान। 
नहीं रही अब लालसा, लेते हम यह मान ।।26।।

कोई देखेगा नहीं, दिया युद्ध क्यों छोड़। 
बस कायरता की कथा, दी जाएगी जोड़ ।।27।।

कायरता सब छोड़ दे, छोड़ो सब वैराग। 
वीर पुरुष बलवान है, तू रण में ले भाग ।।28।।

ज्ञान योग तूने सुना, आगे सुन अब कर्म। 
कर्म ज़रूरी है सदा, समझो इसका मर्म ।।29।।

कामना जुड़े कर्म से, होता है वह रोग। 
कामना घटे कर्म से, बने वह कर्म योग ।।30।।

अर्जुन! जिसका ज्ञान हो, कर्मयोग से युक्त। 
जन्म-मरण से जीव वह, होता है डर मुक्त ।।31।।

जिसमें फल का लोभ हो, होता वह नाकाम। 
छोटा प्रयास भी बड़ा, होता जो निष्काम ।।32।।
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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सोमवार, अक्तूबर 07, 2024

सांख्य योग ( भाग - 3 )

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अर्जुन ! ऐसे देख तू, जैसे पुरुष महान। 
उठ ऊपर इस देह से, कर आत्मा का ध्यान ।।17 11

सारे विचार त्याग दे, कर ले मन को शुद्ध। 
पाप नहीं इसमें जरा, करना होगा युद्ध ।। 18।।

हे अर्जुन ! नश्वर नहीं, आत्मा देह समान। 
जन्म-मरण से मुक्त है, तू इसको ले जान ।।19।।

हैरानी से देखते, कुछ सुनकर हैरान। 
कुछ सुनकर समझे नहीं, बड़ा गूढ़ यह ज्ञान ।।20 ।।

अजर अमर आत्मा रहे, इसका यही स्वभाव 
पहले भी है, बाद भी, शरीर एक पड़ाव ।।21।।

शस्त्रों से कटती नहीं, जला न सकती आग।
आत्मा सदैव ही रहे, तू निद्रा से जाग ।।22।।

जो है तेरे सामने, वही जरूरी कर्म। 
पाप-पुण्य को छोड़ दे, युद्ध बना है धर्म ।।23।।

मर जाना या मारना, है वीरों का काम। 
रण से जो भी भागते, होते हैं बदनाम ।।24।।
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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सोमवार, सितंबर 30, 2024

सांख्य योग ( भाग - 2 )

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यश देगा कैसे हमें, इतना भारी पाप ।
समझ नहीं आता मुझे, समझाएँ अब आप ।। 9।।

शिष्य मानकर ज्ञान दें, शंका से हो त्राण। 
शरणागत हूँ आपका, कर देना कल्याण ।।10 ।।

निद्रा जिसने जीत ली, उसने मानी हार। 
संजय कहता हाल सब, दे पूरा विस्तार ।। 11 ।।

केशव अर्जुन को कहे, चिंता तेरी व्यर्थ । 
तू अधकचरे ज्ञान से, करने लगा अनर्थ ।।12 ।।

झलके तेरी बात में, बहुत बड़ा पांडित्य ।
पर मर्म समझता नहीं, है आत्मा तो  नित्य ।। 13 ।।

इतना ज्यादा सोच मत, मन को थोड़ा रोक।
अर्जुन ! नश्वर देह का, ठीक नहीं है शोक ।। 14।।

आत्मा बदले देह को, एक जन्म को भोग।
रहते तीनों काल में, मैं, तुम, ये सब लोग ।। 15।।

खिले कमल-सा जो यहाँ, विषयों को ले जीत ।
मोक्ष मिले उसको सदा, यही चले है रीत ।।16।। 
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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