सोमवार, नवंबर 04, 2024

सांख्य योग ( भाग - 7 )

हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, पंचकूला के वर्ष 2022 के श्रेष्ठ हिंदी काव्य कृति पुरस्कार से पुरस्कृत पुस्तक 'गीता दोहावली' से 

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अर्जुन पूछे प्रश्न फिर, मुझको दें यह ज्ञान। 
कैसे उठता-बैठता, जो है समाधिवान ?।।45 ।।

केशव फिर कहने लगे, सुनो लगाकर ध्यान।
जिसने छोड़ी कामना, होता वही महान ।।46 ।।

सुख-दुख विचलित ना करें, नष्ट क्रोध, भय, राग।
स्थिर जिस जन की बुद्धि है, वही गया है जाग।।47 ।।

कछुआ बनकर बुद्धिजन, ले इंद्रियाँ समेट। 
अकड़ फिर दिखाते नहीं, ना मन, ना ही पेट ।।48।।

रस बँधकर उनसे रहे, जो करते बस त्याग।
कर्मयोग से बद्ध जो, रस भी जाते भाग ।।49 ।।

त्याग अर्थ रखता नहीं, जब तक रहे चुनाव। 
धन छोड़ा या मोक्ष को, रहा एक ही भाव ।।50 ।।

मन वश कर लें इंद्रियाँ, हैं बेहद बलवान। 
जो जन इनको जीत ले, होता समाधिवान ।।51।।

मन विषयों को सोचता, पैदा हो अनुराग। 
बाधित हो जब कामना, जले क्रोध की आग ।।
52।।

गुस्सा लाता मूढ़ता, करे बुद्धि को नष्ट। 
दूषित होता आचरण, हो मानव पथभ्रष्ट ।।53 ।।
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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सोमवार, अक्तूबर 28, 2024

सांख्य योग ( भाग - 6 )

हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, पंचकूला के वर्ष 2022 के श्रेष्ठ हिंदी काव्य कृति पुरस्कार से पुरस्कृत पुस्तक 'गीता दोहावली' से 
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छोड़ो इस आसक्ति को, तुम अपनाओ योग। 
रहते जो समभाव में, हैं धन्य वही लोग ।।39।।

कर्मयोग कहता यही, चाहत होती हीन। 
फल की इच्छा जो करें, होते जन वे दीन।।40।।

पाप-पुण्य की सोच मत, इनसे रख न लगाव। 
कर्म दिलाता मुक्ति है, इससे करो जुड़ाव ।।41।।

कर्म नासमझ छोड़ते, रहते बंधन युक्त। 
ज्ञानीजन फल छोड़कर, हो जाते हैं मुक्त।।42।।

दलदल से ऊपर उठो, बनना कमल स्वरूप।
पाएगा वैराग्य को, जो तेरे अनुरूप ।।43।।

तू विचलित है इसलिए, सुने कई सिद्धांत।
परमात्मा को जानकर, हो जाएगा शांत ।।44।।

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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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