सोमवार, जनवरी 16, 2012

आरक्षण की मार

आरक्षण  की  मार  है , रही  देश  को  मार ।
इक जाति कभी दूसरी , मांगे ये अधिकार ।।
मांगे ये अधिकार , नहीं इसका हल कोई   ।
करें  हैं  तोड़ - फोड़ , व्यर्थ में ताकत खोई ।।
कहे विर्क कविराय , नहीं दिखते शुभ लक्षण ।
हो सुविधा की मांग , न मांगो तुम आरक्षण ।।

* * * * *    

3 टिप्‍पणियां:

Raravi ने कहा…

bilkul sahi kaha hai aapne. suvidha ki mang ho aarakshan ki nahin.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सटीक रही यह कुण्डलिया!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

निज स्वार्थ ने अंधा बना रखा है, जिस भेदभाव का ये रोना रोते हैं वह यहाँ इन्हें नजर नहीं आता !

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