मंगलवार, सितंबर 03, 2013

इश्क करो, दीवाने हो जाओ

जो मदमस्त न हो, अब ऐसी कोई सुबह नहीं, शाम नहीं
तेरी  याद  नशा  देती  है , मेरे  हाथों  में  जाम  नहीं  ।

धड़के तेरी खातिर मेरा दिल, मेरी खातिर तेरा दिल
कितना अच्छा है कि हमारे रिश्ते का कोई नाम नहीं ।

दौलत के अम्बार सकूँ देंगे तुम्हें, ये वह्म न पालो 
दिल से इंसा को चाहो, इससे बढ़कर कोई काम नहीं ।

इस दुनिया को छोड़ो तुम, इश्क करो, दीवाने हो जाओ
न डरो तुम, उल्फत तो तमगा है, ये कोई इल्जाम नहीं ।

मैं दिल की बात सुनाता हूँ, सुनना चाहो तो सुन लेना
दुनिया वालो मेरा मकसद तुम्हे देना पैगाम नहीं ।

दिल झुकने को तैयार यहाँ, समझो वो स्थान खुदा का है
चूक हुई है, मंदिर-मस्जिद 'विर्क' इमारत का नाम नहीं ।

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2 टिप्‍पणियां:

देवदत्त प्रसून ने कहा…

आज 'शिक्षक-दिवस; पर आप सभी मित्रों को हार्दिक वधाई !
वास्तव में विर्क साहब !अपना 'मन-डर' ही मन्दिर है !! आप ने सही कहा है |

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर सभी अच्छे एक से बढ़कर एक !

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