बुधवार, मार्च 04, 2015

आई महूबब की याद, हुई आँख नम

सदा नहीं रहता ये खुशगवार मौसम 
खुशियों पर हावी हो ही जाते हैं गम । 
हालात बदलते कितनी देर लगे है 
आई महूबब की याद, हुई आँख नम । 

दिल टूटे, चाहे रुसवा हो मुहब्बत 
कब किसी की सुने, ये वक्त बेरहम । 

दोस्ती की अहमियत नहीं रही जब यहाँ 
क्या अहमियत रखेगी लोगों की कसम । 

नफरतों की रात में मुहब्बत का चिराग 
रौशनी तो है, मगर बड़ी मद्धिम-मद्धिम । 

बैठकर मसलों का जिक्र तो किया होता 
 फिर देखते, कसूरवार तुम थे या हम । 

बदले में भले ' विर्क ' बेवफाई ही मिले है 
कुछ लोग फिर भी लहराएँ वफ़ा का परचम । 

दिलबाग विर्क 
*****
काव्य संकलन - हृदय के गीत 
संयोजन - सृजन दीप कला मंच, पिथौरागढ़ 
प्रकाशन - अमित प्रकाशन, हल्द्वानी ( नैनीताल )
प्रकाशन वर्ष - 2008 

3 टिप्‍पणियां:

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

कसूरवार तुम थे या हम ।
-मसला कभी सुलझता नहीं !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत लाजवाब शेर ... प्रेम रस से सरोबर ...

KAHKASHAN KHAN ने कहा…

बहुत ही सुंदर और लाजवाब।

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