बुधवार, मार्च 09, 2016

मन और पत्ते

लालच 
छोटा हो या बड़ा 
मन डोल ही जाता है 
लालच को देखकर 
वैसे ही जैसे 
डोल जाते हैं पत्ते 
हवा चलने पर 

पत्तों की तरह 
बेशक दिखता नहीं 
मन का डोलना 
मगर झलकता है 
हमारे कृत्यों में 

मौजूद रहता है यह लालच 
अनेक रूपों में 
हर जगह
हर समय 
हवा की तरह 
कमोबेश मात्रा में 

पत्तों का डोलना 
हार नहीं होती पेड़ की 
लेकिन मन का डोलना 
हार होती है आदमी की 
आखिर फर्क तो है 
मन और पत्तों में 
आदमी और पेड़ में |

दिलबागसिंह विर्क 
******

1 टिप्पणी:

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

पत्तों का डोलना
हार नहीं होती पेड़ की
लेकिन मन का डोलना
हार होती है आदमी की
आखिर फर्क तो है
मन और पत्तों में
आदमी और पेड़ में |
nishchit taur pe fark hota hai :) umda rachna ..jsk

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