बुधवार, मार्च 01, 2017

बिटिया घर की शान

बाँहे फैलाए तुझे , बिटिया रही पुकार
तुम जालिम बनना नहीं , मांगे बस ये प्यार  |

निश्छल , मोहक , पाक है , बेटी की मुस्कान 
भूलें हमको गम सभी , जाएँ जीत जहान |

क्यों मारो तुम गर्भ में , बिटिया घर की शान 
ये चिड़िया-सी चहककर , करती दूर थकान | 

बिटिया कोहेनूर है , फैला रही प्रकाश 
धरती है जन्नत बनी , पुलकित है आकाश |

तुम बेटी के जन्म पर , होना नहीं उदास 
गले मिले जब दौडकर , मिट जाते सब त्रास |

    दिलबाग विर्क  

5 टिप्‍पणियां:

Archana Pandey ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-01-2022) को चर्चा मंच     "मकर संक्रान्ति-विविधताओं में एकता"    (चर्चा अंक 4310)  (चर्चा अंक-4307)     पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
-- 
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना।

Manisha Goswami ने कहा…

बाँहे फैलाए तुझे,बिटिया रही पुकार
तुम जालिम बनना नहीं,मांगे बस ये प्यार|
खूबसूरत संदेश देती बहुत ही प्यारी रचना

अनीता सैनी ने कहा…

वाह!बहुत सुंदर सर।
सादर

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...