मंगलवार, अगस्त 08, 2017

बातचीत बहाल कर

दिल में कोई ग़लतफ़हमी है तो सवाल कर
तेरी महफ़िल में आया हूँ, कुछ तो ख़्याल कर।

मिल बैठकर सुलझाएगा तो सुलझ जाएँगे मुद्दे
न लगा चुप का ताला, बातचीत बहाल कर।

सोच तो सही, तेरे दर के सिवा कहाँ जाऊँगा
तेरा दीवाना हूँ, न मुझे इस तरह बेहाल कर।

मैं पश्चाताप करूँगा बीते दिनों के लिए
अपनी ग़लतियों का तू भी मलाल कर।

मैं कोशिश करूँगा विर्कतेरा साथ देने की
तोड़ नफ़रत की दीवार, आ ये कमाल कर।

दिलबागसिंह विर्क 
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10 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

@मिल बैठकर सुलझाएगा तो सुलझ जाएँगे मुद्दे, न लगा चुप का ताला, बातचीत बहाल कर......सौ झगड़ों का एक हल

'एकलव्य' ने कहा…

बहुत ख़ूब ! क्या बात है ,एक से बढ़कर एक लाज़वाब ,आभार। "एकलव्य"


shashi purwar ने कहा…

वाह वाह दिलबाग जी बहुत सुन्दर गजल बातचीत से ही खुशियां गुलजार कर आपकी गजल जीवन को सरल बना रही है साधारण से कथ्य को आपने गजल में ढाल दिया बहुत खूब बहुत आनंद आया बधाई आपको।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

सरलता से अपनी बात कहना भी सुन्दर कला है। दिलबाग जी की रचना पढ़कर दिल बाग़-बाग़ हो गया।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत ही सुन्दर गजल
वाह!!!

Meena sharma ने कहा…

सुंदर सरल शब्दों में कहे गए शेर...
दिल में कोई ग़लतफ़हमी है तो सवाल कर
तेरी महफ़िल में आया हूँ, कुछ तो ख़्याल कर।

मिल बैठकर सुलझाएगा तो सुलझ जाएँगे मुद्दे
न लगा चुप का ताला, बातचीत बहाल कर।
बहुत खूबसूरत खयाल !

Onkar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहद खूबसूरत

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब

Swarajya karun ने कहा…

मिल बैठकर सुलझाएगा तो सुलझ जाएँगे मुद्दे
न लगा चुप का ताला, बातचीत बहाल कर।
बेहतरीन पंक्तियाँ। सुन्दर ग़ज़ल । हार्दिक बधाई । गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं ।6

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