मंगलवार, सितंबर 12, 2017

मुहब्बत दिल के लिए आतिश हुई

ये मुझसे कैसी बेहूदा ख़्वाहिश हुई 
मुहब्बत दिल के लिए आतिश हुई।

ढूँढ़ो, कहीं से आशिक़ों को ढूँढो 
ख़ूने-जिगर की अगर फ़रमाइश हुई।

सुबह तक तो मौसम बिल्कुल साफ़ था 
कब बादल घिरे और कब बारिश हुई।

बेवफ़ाई गुनाह नहीं, बस यही सोचकर 
न हमसे किसी अदालत में नालिश हुई।

दुश्मनों के इशारे पर चले दोस्त 
मेरे ख़िलाफ़ ये कैसी साज़िश हुई।

कुंदन बनकर निकला हौसला मेरा 
जब-जब ‘विर्क’ इसकी आज़माइश हुई।

दिलबागसिंह विर्क 
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