बुधवार, दिसंबर 06, 2017

प्यार भरा दिल दग़ाबाज़ नहीं होता

न चाहो ताज, सबके सिर पर ताज नहीं होता 
मिले मुहब्बत, इससे बढ़कर एजाज़ नहीं होता।

परहेज़ ही काम करता है इस इश्क़ में यारो 
इस मर्ज़ के मरीज़ का इलाज नहीं होता। 

अश्क बहाते, ग़म उठाते हैं लोग वहाँ के 
वफ़ा निभाना यहाँ का रिवाज नहीं होता।

हिम्मत हो पास तो अभी मुमकिन है सब कुछ 
कल कैसे होगा वो काम, जो आज नहीं होता

चेहरे पे मासूमियत झलकती है ख़ुद-ब-ख़ुद 
सीने में छुपाया जिसने राज़ नहीं होता।

यही ख़ासियत इसकी, इस पर एतबार करना 
प्यार भरा दिल ‘विर्क’ दग़ाबाज़ नहीं होता।

दिलबागसिंह विर्क 
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7 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-12-2017) को "मेरी दो पुस्तकों का विमोचन" (चर्चा अंक-2811) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

'एकलव्य' ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार ११ दिसंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

शुभा ने कहा…

वाह!!!बहुत खूब।

palash ने कहा…

सभी अच्छी लगी किन्तु
चेहरे पे मासूमियत झलकती है ख़ुद-ब-ख़ुद
सीने में छुपाया जिसने राज़ नहीं होता।
ये बहुत अच्छी लगी

NITU THAKUR ने कहा…

वाह!!!
बहुत खूब अच्छी लगी

रेणु ने कहा…

आदरणीय दिलबाग जी -- खूबसूरत पंक्तियों से सजी रचना बहुत अच्छी है -सादर शुभकामना |

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