बुधवार, मार्च 07, 2018

न यूँ ही कर बदनाम मुझे

दोस्त कहूँ कि दुश्मन जिसने भेजे हैं ग़म के पैग़ाम मुझे
साक़ी बना बैठा है वो, पिलाकर अश्कों के जाम मुझे ।

मेरे पास भी है बहुत कुछ इस ज़माने को बताने लायक़ 
अब छोड़ दे बीती बातों को, न यूँ ही कर बदनाम मुझे ।

सरे-बज़्म अपने ज़ख़्मों की नुमाइश तो लगा दी तूने 
बता तो सही, इस इश्क़ ने दिए हैं कौन-से इनाम मुझे। 

सफ़र ज़िंदगी का कब कटता है सिर्फ़ यादों के सहारे 
ज़िंदा रहना चाहता हूँ मैं, करने दे कोई काम मुझे ।

इश्क़ करना, लुटना, फिर रोना, ये कोई हुनर तो नहीं
क्या था मैं, क्यों सिर-आँखों पर बैठाता अवाम मुझे । 

यूँ तो पागल दिल को जलाकर राख बना रखा है मगर 
अक्सर याद आता है ‘विर्क’ एक चेहरा सुबहो-शाम मुझे। 

दिलबागसिंह विर्क 
*****

10 टिप्‍पणियां:

Lokesh Nashine ने कहा…

वाह्ह्ह् बेहतरीन

Meena sharma ने कहा…

सरे-बज़्म अपने ज़ख़्मों की नुमाइश तो लगा दी तूने
बता तो सही, इस इश्क़ ने दिए हैं कौन-से इनाम मुझे।

सफ़र ज़िंदगी का कब कटता है सिर्फ़ यादों के सहारे
ज़िंदा रहना चाहता हूँ मैं, करने दे कोई काम मुझे ।।
वाह !!!

Sweta sinha ने कहा…

वाह्ह्ह....बेहद उम्दा गज़ल...शानदार,लाज़वाब👌

मन की वीणा ने कहा…

बेहतरीन सुंदर गजल लय बद्ध ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-03-2017) को "अगर न होंगी नारियाँ, नहीं चलेगा वंश" (चर्चा अंक-2904) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद उम्दा गज़ल..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बहुत खूब !

NITU THAKUR ने कहा…

वाह !!! बहुत सुन्दर लाजवाब

Jyoti khare ने कहा…

वाह
बहुत सुंदर
सादर

पल्लवी गोयल ने कहा…

वाह!
लाज़वाब।
सादर।

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