तन्हा हूँ, उदास हूँ, जन्मेगा कोई गीत फिर
बहुत याद आ रहा है, आज मुझे मेरा मीत फिर।
बदनाम हो न जाए इश्क़ कहीं, मर मिटे थे लोग
निभानी होगी हमें भी, वफ़ा की वही रीत फिर।
आदमियत पर मज़हबों को क़ुर्बान करके देखो
वादियों में गूँजेगा, अमनो-चैन का संगीत फिर।
ग़म के मौसम में ख़ुशबू फैलाएँ वो वस्ल के दिन
उम्मीद है ज़िंदगी को रौशन करेगी प्रीत फिर।
ग़म उठाना, सितम सहना, मगर सच को न छोड़ना
अज़ल से हो रही है, ‘विर्क’ होगी सच की जीत फिर।
दिलबागसिंह विर्क
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5 टिप्पणियां:
वाह
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 23 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बेहतरीन प्रस्तुति
वाह!!!
लाजवाब गजल...
बहुत खूब , लाजबाब ,सादर नमस्कार
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