ऐसा नसीब हमारा क्यों नहीं ?
चाँद ज़मीं पर उतारा क्यों नहीं ?
दोस्त जब तमाशबीन बन गए तो
दुश्मनों ने हमें मारा क्यों नहीं ?
सदियों से हैं हमसफ़र दोनों
किनारे से मिले किनारा क्यों नहीं ?
यूँ ही खींच ली बीच में दीवारें
जो मेरा है, तुम्हारा क्यों नहीं ?
गुरूर था या एतबार न था
तूने मुझे पुकारा क्यों नहीं ?
न चूकना वरना फिर कहोगे
मौक़ा मिलता दोबारा क्यों नहीं ?
बहुत बुरे थे जब हम ‘विर्क’ फिर
ज़माने ने हमें दुत्कारा क्यों नहीं ?
दिलबागसिंह विर्क
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6 टिप्पणियां:
वाह !! बहुत खूब... ,सादर नमस्कार
बेहतरीन गज़ल
यूँ ही खींच ली बीच में दीवारें
जो मेरा है, तुम्हारा क्यों नहीं ?बेहतरीन !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" कल शाम सोमवार 07 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत शानदार अश्आर हर शेर बेमिसाल।
दोस्त जब तमाशबीन बन गए तो
दुश्मनों ने हमें मारा क्यों नहीं ?
सही कहा आपने जब अपने विश्वास पात्र लोग धोखा देते हैं तो दुश्मनों से मरने की उम्मीद दुश्मनों से की जाती है
बहुत सुन्दर ग़ज़लें 🙏
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