बुधवार, जनवरी 23, 2019

अपने घर जलाए लोगों ने करके नफ़रत

ऐ दिल न डर बेमतलब, दिखा थोड़ी हिम्मत 
इश्क़ किया जिसने, वही जाने इसकी लज़्ज़त। 

वो सहमे-सहमे से हैं और हम बेचैन 
देखो, कैसे होगा अब इजहारे-मुहब्बत। 

फिर भी न जाने क्यों ये समझते ही नहीं 
अपने घर जलाए लोगों ने करके नफ़रत। 

क्यों रस्मो-रिवाजों को ले बैठते हो तुम 
दिल अगर करना चाहे किसी की इबादत। 

गर इंसानीयत जाग जाए हर इंसान में 
देखना, ज़मीं पर उतर आएगी जन्नत। 

ज़िंदगी का मज़ा लूटते हैं अक्सर वही लोग 
हल पल मुसकराना है ‘विर्क’ जिनकी आदत। 

दिलबागसिंह विर्क 
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8 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-01-2019) को "जन-गण का हिन्दुस्तान नहीं" (चर्चा अंक-3227) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

विश्वमोहन ने कहा…

सुंदर।

मन की वीणा ने कहा…

उम्दा बेहतरीन क्रांतिकारी विचार।

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत खूब........ लाजबाब ,सादर नमन आप को

रवीन्द्र भारद्वाज ने कहा…

बहुत खूब...... लाजवाब।

Prakash Sah ने कहा…

बेहद खूबसूरत

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
बहुत लाजवाब...

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