ख़्यालों की दुनिया में गुम, बेपरवाह इस ज़माने से
मालूम नहीं हमें, क्यों हैं हम इस क़द्र दीवाने से।
तुम्हीं बताओ आख़िर कौन-सा तरीक़ा अपनाएँ हम
बहलता नहीं दिल, किसी भी तरह बहलाने से।
थक-हार गए अपनी तरफ से कोशिशें करते-करते
भुला देते तुम्हें, अगर भूल जाते तुम भुलाने से।
मुहब्बत के ज़ख़्मों ने आसां कर दी है ज़िंदगी
मज़बूत होता चला गया ये दिल, दर्द उठाने से।
बड़ी खोखली है शरीफ़ चेहरों की शराफ़त फिर भी
इसमें हर्ज नहीं, अगर कुछ हासिल हो आज़माने से।
हर किसी को मालूम है, इस ज़िंदगी की हक़ीक़त
कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला ‘विर्क’ तेरे बताने से।
दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
वाह !!! बहुत खूब..... सादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-03-2019) को "नारी दुर्गा रूप" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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