बड़ा ग़म उठाया है मैंने, दिल की बातें मानकर
अब जीना सीख रहा हूँ, दिल पर रखकर पत्थर।
बुरे दिन जब आते हैं, तब पता चलता है
बदक़िस्मती क्या है, किसे कहते हैं मुक़द्दर।
हालातों से हारकर चुप होना पड़ता है
क्या करें, हर कोई नहीं होता सिकन्दर।
इसके साथ जीने की आदत बना लो तुम
लाइलाज होता है यारो, ये दर्दे-जिगर।
बस कुछ ऐसे ही दस्तूर हैं इस दुनिया के
डरने वालों को डराता चला जाता है डर।
ज़िंदगी की बिसात पर संभलकर चलना चाल
कब खेल बदल जाए ‘विर्क’ हो न पाए ख़बर।
दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
डरने वालों को डराता चला जाता है डर
sunder rachnaa ....
बस कुछ ऐसे ही दस्तूर हैं इस दुनिया के
डरने वालों को डराता चला जाता है डर।
ज़िंदगी की बिसात पर संभलकर चलना चाल
कब खेल बदल जाए ‘विर्क’ हो न पाए ख़बर।
पूरी गजल ही अच्छी है पर ये चारों पंक्तियाँ तो अनमोल हैं।
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