बुधवार, जून 12, 2019

बस इतना ही फ़र्क़ होता, फ़र्ज़ानों और दीवानों में


दिल की कश्ती को उतारें मुहब्बत के तूफ़ानों में
शुमार होता है उनका, ग़ाफ़िलों में, नादानों में।

वो यकीं रखे ज़ेहनीयत में, ये दिल को दें अहमियत
बस इतना ही फ़र्क़ होता, फ़र्ज़ानों और दीवानों में।

कसक के सिवा क्या पाओगे तहक़ीक़ात करके
उनकी मग़रूरी छुपी हुई है उनके बहानों में।

वो हमदम भी है, क़ातिल भी, तमाशबीन भी
तुम्हीं बताओ, उसे रखूँ अपनों में या बेगानों में।

चाँद को हँसते देखा, चकोर को तड़पते देखा
ऐसा वाक़िया आम हो चला दिल के फ़सानों में।

विर्कबहारें उनको फिर कभी नसीब नहीं होती
साथी छोड़कर चले गए हों जिन्हें वीरानों में।

दिलबागसिंह विर्क 
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3 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

वाह ! बेहतरीन

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-06-2019) को "काला अक्षर भैंस बराबर" (चर्चा अंक- 3366) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

kya hai kaise ने कहा…

खूबसूरत पंक्तियाँ

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