बुधवार, अक्तूबर 02, 2019

इश्क़ के हिस्से रुसवाई है

ख़ामोशी है, तन्हाई है 
यादों ने महफ़िल सजाई है। 

दिल की बातें न मानो लोगो 
इश्क़ के हिस्से रुसवाई है। 

हमारा पागलपन तुम देखो 
हर रोज़ नई चोट खाई है।

तमाम कोशिशें नाकाम रही 
क्या ख़ूब क़िस्मत पाई है। 

गुज़रे वक़्त के हर लम्हे ने 
रातों की नींद उड़ाई है। 

वफ़ा करने की ख़ता कर बैठे 
हुई ‘विर्क’ बहुत जगहँसाई है।

दिलबागसिंह विर्क 
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6 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-10-2019) को   "नन्हा-सा पौधा तुलसी का"    (चर्चा अंक- 3478)     पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Nitish Tiwary ने कहा…

सुंदर ग़ज़ल।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वगात है।
iwillrocknow.com

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सृजन
सादर

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

मन की वीणा ने कहा…

उम्दा/ बेहतरीन सृजन।
तमाम कोशिशें नाकाम रही
क्या ख़ूब क़िस्मत पाई है।

गुज़रे वक़्त के हर लम्हे ने
रातों की नींद उड़ाई है।
वाह वाह्ह्ह्।

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" कल शाम सोमवार 07 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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