गुरुवार, सितंबर 19, 2024

सांख्य योग ( सार )

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संजय कहते हैं कि शोकयुक्त अर्जुन को संबोधित करते हुए भगवान श्री कहते हैं कि तुम्हारा आचरण श्रेष्ठ पुरुष वाला नहीं, अतः तू दुर्बलता छोड़कर युद्ध के लिए तैयार हो। अर्जुन अपने प्रियजनों पर बाण न चला पाने की विवशता बताता है और सही शिक्षा की माँग करता है। संजय कहता है कि निद्रा को जीतने वाला अर्जुन (गुडाकेश) युद्ध नहीं करूंगा कहकर चुप हो जाता है। इस पर श्री कृष्ण कहते हैं कि तू पंडितों जैसे वचन तो कहता है, लेकिन तेरा व्यवहार वैसा नहीं है। वे देह की नश्वरता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि आत्मा न जन्मती है, न मरती है। उसे न शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है। आत्मा सिर्फ देह रूपी वस्त्र बदलती है। वे इसे ज्ञान योग कहते हैं और फिर कर्म योग के बारे में समझाते हैं। वे कहते हैं कि तेरा अधिकार कर्म करने पर है, उसका फल पाने में नहीं। तू आसक्ति को छोड़कर कर्म कर, क्योंकि सकाम कर्म अत्यंत निम्न श्रेणी का होता है। अर्जुन पूछता है कि समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त सिद्ध बुद्धि पुरुष के क्या लक्षण हैं? इस पर श्री कृष्ण कहते हैं कि स्थिर बुद्धि से राग, भय, क्रोध नष्ट हो जाते हैं। वह न प्रसन्न होता है, न द्वेष करता है। वे कछुए का उदाहरण भी देते हैं।
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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