कभी रोओगे यार, कभी बहुत पछताओगे
पत्थर दिलों से जब तुम दिल लगाओगे।
किसी-न-किसी मोड़ पर सामना हो ही जाता है
दर्द को सहना सीख लो, इससे बच न पाओगे।
जो हुआ, अच्छा हुआ, कहकर भुला दो सब कुछ
बीती बातें याद करके, नए दर्द को बुलाओगे।
दोस्त बनाए रखना, भले कहने भर को ही
दोस्तों से हाथ धो बैठोगे, जब आज़माओगे।
सब देते हैं दग़ा, सब निकलते हैं मतलबी
किस-किस को याद रखोगे, किसे भुलाओगे।
ठोकर खाकर न संभलना, समझदारी तो नहीं
कब तक और कितनी बार ‘विर्क’ धोखा खाओगे।
दिलबागसिंह विर्क
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5 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 29 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ठोकर खाकर न संभलना, समझदारी तो नहीं
कब तक और कितनी बार ‘विर्क’ धोखा खाओगे।
वाह!!!
बहि सटीक सार्थक लाजवाब गजल
जो हुआ, अच्छा हुआ, कहकर भुला दो सब कुछ
बीती बातें याद करके, नए दर्द को बुलाओगे।
बहुत खूब दिलबाग जी | सभी शेर बेहतरीन और सार्थक ! गजल शानदार बन पडी है | सादर शुभकामनायें |
सही कहा है -हाज़िर की हुज्जत नहीं ग़ायब की न तलाश.जाही विध राखे राम .....
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-09-2019) को "हैं दिखावे के लिए दैरो-हरम" (चर्चा अंक- 3450) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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