कसक के हद से बढ़ने को उसका मरहम कहते हैं।
यही रीत है नज़रों से खेल खेलने वालों की
दिल के बदले दर्द देने वाले को सनम कहते हैं।
पतझड़ को बहार बना देने का दमखम है जिसमें
उस सदाबहार मौसम को प्यार का मौसम कहते हैं।
उस मुक़ाम पर हैं, यहाँ जीना पड़े यादों के सहारे
हम इसे ख़ुशी कहते हैं, लोग इसे ग़म कहते हैं।
क्या औक़ात है आदमी की ख़ुदा से टकराने की
जितने भी किए सितम वक़्त ने, उनको कम कहते हैं।
इश्क़ का मुक़ाम पाकर ‘विर्क’ ये हाल हुआ है मेरा
वो इस क़द्र शामिल मुझमें कि मैं को भी हम कहते हैं।
दिलबागसिंह विर्क
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10 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 8 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
उम्दा ग़ज़ल
वाह !बहुत उम्दा सर
सादर
वाह!!!
बहुत लाजवाब...
बेहतरीन
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" शुक्रवार 09 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर
वाह बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत सुंदर
वाह जी वाह ! उम्दा
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