बुधवार, जनवरी 29, 2020

हर किसी को साहिल न मिले है

जैसे सूरज उगने के बाद दिन ढले है
ऐसे क़िस्मत मेरी रोज़ रंग बदले है।

आख़िर बुझना ही होगा देर-सवेर इसे
दौरे-तूफ़ां में कब तलक चिराग़ जले है।

दिन-ब-दिन जवां हुई, इसका इलाज क्या
मेरे इस दिल में तेरी जो याद पले है।

न गवारा था मुझको अश्क बहाना लेकिन
इस तक़दीर पर कब किसी का ज़ोर चले है।

क़ियामत से भी बढ़कर होती है वो कसक
जब भी मेरा ये दिल दीवाना मचले है।

मंजिल से बढ़कर हुए है अहमियत सफ़र की
सुन ऐ ‘विर्क’, हर किसी को साहिल न मिले है।

दिलबागसिंह विर्क 
*****

8 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब

मन की वीणा ने कहा…

बहुत शानदार प्रस्तुति।

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
बहुत ही लाजवाब...

Rohitas Ghorela ने कहा…

वाह वाह
क्या कहने।
लाजवाब।
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र 

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 21-08-2020) को "आज फिर बारिश डराने आ गयी" (चर्चा अंक-3800) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

"मीना भारद्वाज"

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

अनीता सैनी ने कहा…

वाह !लाजवाब सर।

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत खूब,हर एक शेर लाज़बाब ,सादर नमन आपको

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