तेरे जाने के बाद लगा दिल को ऐसे
कोई ग़ज़ल अधूरी छूट गई हो जैसे |
हर शख्स अपने ढंग से निभाता है इसे
जानकर भी बच न पाया वफा-सी शै से |
न पूछो आए थे हमें ख्याल कैसे-कैसे |
तुम्हें भुलाने की कोशिश करते हैं हम
कभी अपने आंसुओं से, तो कभी मै से |
लोगों की नजर में भले जिन्दा हैं मगर
साँसें तो कब की निकल चुकी हैं रगो-पै से |
यूँ तो बेवफाई आम बात हो गई है मगर
गम है तो यही ' विर्क ' तुम भी निकले वैसे |
दिलबाग विर्क
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रगो-पै ----- शरीर
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