गुरुवार, अक्टूबर 23, 2014

नियम ढूँढना आपका काम है

बेवफाई  तेरी  का  ये  अंजाम  है 
गूँजता महफ़िलों में, मेरा नाम है । 
क्या मिला पूछते हो, सुनो तुम जरा 
इश्क़ का अश्क़ औ' दर्द ईनाम है । 

लो, कई चेहरों से उठेगा नक़ाब 
आ गया अब मेरे हाथ में जाम है । 

हर तरफ दौर है नफरतों का यहाँ 
प्यार का लाज़मी आज पैगाम है । 

बात कहना मेरा काम था, कर दिया 
अब नियम ढूँढना आपका काम है । 

मान जाओ इसे, है हकीकत यही 
बद नहीं ' विर्क ', वो सिर्फ बदनाम है । 

दिलबाग विर्क 
*****

गुरुवार, अक्टूबर 16, 2014

तेरे पास आने के लिए

क्यों बहाना ढूँढता मुझको बुलाने के लिए 
मैं सदा तैयार, तेरे पास आने के लिए । 

देखना फिर गम-ख़ुशी कुछ फर्क डालेंगे नहीं 
चाहिए ज़िंदादिली बस, मुस्कराने के लिए । 
उम्र बीती पर मुहब्बत को समझ पाए नहीं 
मैं लिखा करता नहीं, उनको सुनाने के लिए । 

खुद सुधरना शर्त पहली, बाद की बातें सभी 
ठीक होगा जो करोगे फिर जमाने के लिए । 

सच बड़ा गहरा दबा है, साधना माँगे बहुत 
उम्र छोटी, ज़िंदगी का राज़ पाने के लिए । 

तू वफ़ा कर, इम्तिहां लेती रहेगी ज़िंदगी 
आ गए सब ' विर्क ' तुझको आजमाने के लिए । 

दिलबाग विर्क 
*****

रविवार, अक्टूबर 05, 2014

मुझे जाम पकड़ा दिया

एक यही मुकाम बाकी था, वो भी दिला दिया 
तेरी मुहब्बत ने मुझे जाम पकड़ा दिया । 

लुटा चमन तो ख़ुशी का मशविरा लगा ऐसे 
रुपया देकर जैसे किसी बच्चे को बहला दिया । 

बीते वक्त को भुला न पाया मैं शायद इसलिए 
इस मौजूदा वक़्त ने अब मुझे भुला दिया । 

कितना साफ़ झूठ है कि प्यार कुछ नहीं देता 
इसने मुझे सिसकियों का लम्बा सिलसिला दिया । 

दिल में ताजा रहे सदा याद तेरी इसलिए 
भरने को हुआ जब जख्म तो सहला दिया । 

तेरी हर हसरत ' विर्क ' खुदा करे हो पूरी 
अपनी हसरतों को मैंने मिट्टी में मिला दिया । 

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - काव्य सुधा 
संपादक - प्रदीप मणि " ध्रुव "
प्रकाशन - मध्य प्रकाश नवलेखन संघ, भोपाल 
प्रकाशन वर्ष - 200 7 
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