मज़ा आने लगा है जीने में।
मैकदे की तरफ़ भेजा था जिसने
बुराई दिखती है अब उसे पीने में।
हवाओं का रुख देखा नहीं था
क़सूर निकालते हैं सफ़ीने में।
रुत बदली दिल का मिज़ाज देखकर
आग लगी है सावन के महीने में।
उतारकर सब नग, मुहब्बत पहनो
देखो कितना दम है इस नगीने में।
जीने लायक़ सब कुछ है यहाँ पर
क्या ढूँढ़ रहे हो ‘विर्क’ दफ़ीने में।
दिलबागसिंह विर्क
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दिलबागसिंह विर्क
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