मंज़िल को पूछते हैं लोग, सफर की कोई कीमत नहीं
इस जहां में नाकाम मुसाफिर की कोई कीमत नहीं ।
गिरने वालों को सहारा देना, नहीं दस्तूर यहाँ का
जो छूटा पीछे, उस हमसफ़र की कोई कीमत नहीं ।
इस मतलबी दुनिया में चलते हैं फरेब के रिवाज
दिल से की गई जो, उस कदर की कोई कीमत नहीं ।
दौलत के तराजू में जिसे चाहो उसी को तोल लो
मगर चाहत से भरी किसी नज़र की कोई कीमत नहीं ।
बेवफाई से सजाकर दामन, मुस्कराते हैं लोग
वफ़ा की बदौलत मिले दर्दे-जिगर की कोई कीमत नहीं ।
क्यों दिल लगाया था ' विर्क ' नफरतपसन्दों की दुनिया में
क्या खबर न थी, मुहब्बत के शजर की कोई कीमत नहीं ।
दिलबागसिंह विर्क
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हरियाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन, सिरसा की तरफ से संपादित कृति " सिरसा जनपद की काव्य सम्पदा " में से