शुक्रवार, जून 21, 2013
रविवार, जून 16, 2013
बुधवार, जून 12, 2013
अगजल - 60
चंद आंसू चंद अल्फाज लेबल की अंतिम रचना । दरअसल यह मेरा कविता संग्रह ( तुकान्तक परन्तु बहर विहीन ) है और इस संग्रह की रचनाएँ उसी क्रम से यहाँ प्रस्तुत की गई हैं । आपकी प्रतिक्रियाएं मिली , इसके लिए आपका आभार ।
उल्फत बुरी थी या हम, ये सोचा करते हैंक्यों हमदम बने हैं गम, ये सोचा करते हैं ।
दिल के जख्म क्या सचमुच लाईलाज होते हैं ?
लगाएं कौन-सी मरहम, ये सोचा करते हैं ।
दगाबाज लगे है इस जमाने का हर शख्स
किसको कहें अब सनम, ये सोचा करते हैं ।
यादों के जो पल सजा रखे हैं जहन में वो
शरारे हैं या शबनम, ये सोचा करते हैं ।
जिस बेवफा से वास्ता नहीं, उसे याद कर
क्यों होती है आँख नम, ये सोचा करते हैं ।
कमी मेरी चाहत में थी या तकदीर में
विर्क मेरे क्यों न हुए तुम, ये सोचा करते हैं ।
दिलबाग विर्क
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सोमवार, जून 10, 2013
रविवार, जून 02, 2013
अगज़ल - 59
हम भी गुजरे थे इस रहगुजर से
गम ही मिलते हैं प्यार के सफर से ।
जुबां बे'मानी है मुहब्बत में
ये खेल खेले जाते हैं नजर से ।
कुछ परवाह नहीं मेरे दिल की
वास्ता पड़ा है कैसे पत्थर से ।
बहुत बड़ी नहीं मेरी ख्वाहिशें
मैं वाकिफ हूँ अपने मुकद्दर से ।
दहशत के लोग इस कद्र आदी हैं
हैरानी होती नहीं किसी खबर से ।
ये हल न हुआ विर्क मसलों का
आँखें बंद कर लो अगर डर से ।
दिलबाग विर्क
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