बुधवार, नवंबर 21, 2012

कितनी ही दीवारें

जाती व धर्म 
कितनी ही दीवारें 
खींची हमने ।
चाय-पानी से 
होता है हर काम 
कार्यलयों में ।
ईश्वर एक है 
ये कहते हैं सभी 
मानते नहीं ।
झूठा प्रचार 
होता है चुनावों में 
सभी के द्वारा ।

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मंगलवार, नवंबर 13, 2012

जलें दीप से दीप


दीवाली त्यौहार पर, जलें दीप से दीप 
सब अन्धकार दूर हों, हो रौशनी समीप ।
हो रौशनी समीप, उमंग जगे हर घर में 
करें तमस का नाश, हो उजास विश्व भर में ।
कहे विर्क कविराय, भरे खुशियों की थाली 
फैले हर्षोल्लास , मनाएं जब दीवाली ।

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गुरुवार, नवंबर 01, 2012

अगजल - 47

जिन्दगी में फैली है कैसी बेनूरी ।
न सुबह सुहानी, न शाम सिन्दूरी ।
चाँद के चेहरे पर दाग क्यों है ?
क्यों है दुनिया की हर शै अधूरी ?

माना ताकतवर है तू बहुत मगर 
ठीक नहीं होती इतनी मगरूरी ।

जब भी पाओगे भीतर मिलेगी 
कहाँ ढूँढो खुशियों की कस्तूरी ।

तुझसे शिकवा करना खता होगी 
इंसान के हिस्से आई है मजबूरी ।

दुनिया सिमट गई मुट्ठी में मगर 
दिलों में ' विर्क ' बढती जाए दूरी ।

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