बुधवार, नवंबर 21, 2012
मंगलवार, नवंबर 13, 2012
गुरुवार, नवंबर 01, 2012
अगजल - 47
जिन्दगी में फैली है कैसी बेनूरी ।
न सुबह सुहानी, न शाम सिन्दूरी ।
चाँद के चेहरे पर दाग क्यों है ?
क्यों है दुनिया की हर शै अधूरी ?
माना ताकतवर है तू बहुत मगर
ठीक नहीं होती इतनी मगरूरी ।
जब भी पाओगे भीतर मिलेगी
कहाँ ढूँढो खुशियों की कस्तूरी ।
तुझसे शिकवा करना खता होगी
इंसान के हिस्से आई है मजबूरी ।
दुनिया सिमट गई मुट्ठी में मगर
दिलों में ' विर्क ' बढती जाए दूरी ।
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