हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, पंचकूला के वर्ष 2022 के श्रेष्ठ हिंदी काव्य कृति पुरस्कार से पुरस्कृत पुस्तक 'गीता दोहावली' से
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छोड़ो इस आसक्ति को, तुम अपनाओ योग।
रहते जो समभाव में, हैं धन्य वही लोग ।।39।।
कर्मयोग कहता यही, चाहत होती हीन।
फल की इच्छा जो करें, होते जन वे दीन।।40।।
पाप-पुण्य की सोच मत, इनसे रख न लगाव।
कर्म दिलाता मुक्ति है, इससे करो जुड़ाव ।।41।।
कर्म नासमझ छोड़ते, रहते बंधन युक्त।
ज्ञानीजन फल छोड़कर, हो जाते हैं मुक्त।।42।।
दलदल से ऊपर उठो, बनना कमल स्वरूप।
पाएगा वैराग्य को, जो तेरे अनुरूप ।।43।।
तू विचलित है इसलिए, सुने कई सिद्धांत।
परमात्मा को जानकर, हो जाएगा शांत ।।44।।
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क
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