कभी हौंसले ने मारा है , कभी लाचारी ने मारा है
दरअसल हमें दो कश्तियों की सवारी ने मारा है ।
तिनकों से बनाना आशियाना क्या गलती न थी
फिर कैसे कहें , मुहब्बत की चिंगारी ने मारा है ।
अक्सर बदनसीबी छीन लेती है जिन्दगी की खुशबू
ये तो एक वहम है कि शिकार को शिकारी ने मारा है ।
कोई माने न माने इसे मगर कडवा सच है ये
बेवफाओं के शहर में वफादारी ने मारा है ।
फिर कौन सी हैरत भरी बात हुई अगर इस जमाने में
इन्सां के पुजारी को , पत्थर के पुजारी ने मारा है ।
एक छत के नीचे रहकर भी दिलों में हैं फासिले
इस जमाने को ' विर्क ' शक की बीमारी ने मारा है ।
दिलबाग विर्क
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