बुधवार, अक्टूबर 05, 2011

तांका - 2



            
                          बुत्त जलता 
                          दशहरे के दिन 
                          रावण नहीं 
                          रावण तो जिन्दा है 
                          हमारे ही भीतर .


                          जिन्दा रखते 
                          भीतर का रावण 
                          और बाहर 
                          पुतले जलाते हैं 
                          धर भेष राम का . 


                               * * * * *
           

9 टिप्‍पणियां:

Mahesh Barmate "Maahi" ने कहा…

bahut khoob... :)

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " ने कहा…

भावभरी अभिब्यक्ति ,हार्दिक बधाई ....
मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है ....

Neelkamal Vaishnaw ने कहा…

बहुत अच्छी और सार्थक बात रखी है आपने लोगों के सामने बधाई हो आपको
जरुर आये और अनुशरण भी करे फेसबुक पर भी

http://www.facebook.com/groups/mitramadhur/
http://neelkamal5545.blogspot.com/2011/10/blog-post.html#links
http://neelkamalkosir.blogspot.com/2011/10/blog-post_03.html#links
http://neelkamaluvaach.blogspot.com/2011/10/blog-post.html#links
‎!!! जय माता दी !!!
http://www.youtube.com/watch?v=X2_jWt0qDSg

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सच्ची बात.... चिंतनीय...

विजयादशमी की सादर बधाईयाँ....

Bharat Bhushan ने कहा…

मानव ऐसे ही अंतर्विरोधों के साथ जीता है.

Dr Varsha Singh ने कहा…

गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुति!
विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक बात कही है ...अपने मन का रावन नहीं दिखता किसी को भी ..अच्छी प्रस्तुति

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

आदरणीय सर,
आपके हाइकुओं पर आधारित हाइगा हिन्दी-हाइगा ब्लॉग पर प्रकाशित हैं|
लिंक नीचे है|
http://hindihaiga.blogspot.com/

सादर
ऋता शेखर 'मधु'

Kunwar Kusumesh ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुती.
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें .

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