सोमवार, अक्टूबर 10, 2011

अग़ज़ल - 26

कोई भी तो नहीं होता इतना करीब दोस्तो
खुद ही उठानी पडती है अपनी सलीब दोस्तो ।

दोस्त बनाओ मगर दोस्ती पे न छोडो सब कुछ 
क्या भरोसा कब बन जाए कोई रकीब दोस्तो ।

हमसफर के नाम पर गर कोई दगाबाज़ निकले
शिकवा छोडो, समझो उसे अपना नसीब दोस्तो ।

कब गम मिले, कब ख़ुशी, कुछ मालूम नहीं पड़ता 
गम  और  ख़ुशी  की  घड़ियाँ  हैं  बेतरतीब  दोस्तो ।
फूल-सी  खूबसूरत  मगर  काँटों  से  सजी  हुई 
दास्तां  जिन्दगी  की  है  बड़ी  ही  अजीब  दोस्तो ।

तमाम  हुनर  सीखे  बस  जीने  के  हुनर  के  सिवा 
तुम भी देख लो, है ' विर्क ' किस कद्र गरीब दोस्तो ।

दिलबाग विर्क
* * * * *

8 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक बात कहती गज़ल ..अच्छी लगी

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत उम्दा खयालात/अशआर...
सादर...

kanu..... ने कहा…

sundar rachna

Asha Joglekar ने कहा…

कब गम मिले, कब ख़ुशी, कुछ मालूम नहीं पड़ता
गम और ख़ुशी की घड़ियाँ हैं बेतरतीब दोस्तो

यही है जिन्दगी ।
खूबसूरत गज़ल ।

Kailash Sharma ने कहा…

कोई भी तो नहीं होता इतना करीब दोस्तो
खुद ही उठानी पडती है अपनी सलीब दोस्तो.

...बहुत खूब...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल

रविकर ने कहा…

देख गरीबी विर्क की, है नसीब हैरान |
दगाबाज थी दोस्ती, दुश्मन पर कुर्बान ||

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

behtarin prastuti

'साहिल' ने कहा…

कब गम मिले, कब ख़ुशी, कुछ मालूम नहीं पड़ता
गम और ख़ुशी की घड़ियाँ हैं बेतरतीब दोस्तो

bahut khoob! umda ghazal

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