गुरुवार, अक्टूबर 18, 2012

बचपन

ये बचपन मासूम - सा , है ईश्वर का रूप 
प्यारी-सी मुस्कान है, ज्यों सर्दी की धूप ।
ज्यों सर्दी की धूप, सुहाती हमको हरपल 
लेती है मन मोह, सदा ही चितवन चंचल ।
लेकर इनको गोद, ख़ुशी से झूम उठे मन 
यही दुआ है विर्क , रहे हंसता ये बचपन ।

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7 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर !!
निश्छल हंसता बचपन
हरता हर किसी का मन !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बच्चों के साथ अपना मन भी बच्चों जैसा ही हो जाता है ...बहुत सुंदर

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सुंदर, प्यारी, भोली सी रचना !:)
बचपन से प्यारा.. कोई भी समय नहीं....
~सादर

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर,प्यारी रचना..
बचपन से अच्छा दिन और कोई नहीं...
:-)

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अति सुंदर, प्यारी रचना..

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर बचपन को मासूमियत लिए सुन्दर प्रस्तुति ..
दुर्गानवमी के साथ ही जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें

देवदत्त प्रसून ने कहा…

'बचपन'जीवन की बुनियाद है |
सब कुछ 'बचपन' के बाद है ||
यह पौधा सु-फल दायी होगा-
'अच्छा पानी','अच्छी खाद' है ||

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