हर गम हँसके उठाया है हमने तेरे गम के सिवा
निभाई हैं कसमें, तुझे भुला पाने की कसम के सिवा ।
आती है जब भी याद तेरी मेरा इम्तिहां होता है
संभाल ही लेते हैं खुद को, आँख नम के सिवा ।
तेरा जाना मुझ पर कुछ ऐसा असर छोड़ गया
खामोश हो गया हूँ मैं, बोलती हुई कलम के सिवा ।
और कुछ भी तो नहीं रहा अब मेरे पागल दिल में
हसीं लोग बेवफा होते हैं, इस एक वहम के सिवा ।
पता नहीं क्यों अभी तक बाकी है इससे लगाव मेरा
ठुकरा दिया है हर किसी को, वफा की रस्म के सिवा ।
तन्हाइयों में गर विर्क रह पाओ तो बेहतर होगा
जमाने की महफिल कुछ नहीं, दास्ताँ-ए-अलम के सिवा ।
दिलबाग विर्क
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दास्ताँ-ए-अलम - दुःख की कहानी
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7 टिप्पणियां:
आंसुओं से भीगे ये अलफ़ाज़ दिल को छू गए..
सुन्दर ग़ज़ल..
सादर
अनु
बेहद भावपूर्ण गजल...
बहुत सुन्दर।। होली की हार्दिक शुभकामनाएं
पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
भीगे-भीगे से एहसास ...बहुत खूब
निभाई है कसमें तुझे भुला पाने की कसम के सिवा ...बहुत सुन्दर भाव दिलबाग जी ...
सुन्दर ग़ज़ल.....
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