चंद रोज़ की मुश्किल
थी, अब तो दिल बहला रखा
है
तेरे जाने के बाद ग़म
को अपने पास बुला रखा है।
जैसे तू ही है मेरी
बाँहों में, यूँ समझता हूँ
तेरी याद को कुछ ऐसे
सीने से लगा रखा है।
मेरे दिल की हर धड़कन
पर लिखा है तेरा नाम
इस बात को छोड़ दें
तो मैंने तुझको भुला रखा है।
डर है वक़्त की हवा
फिर से सुलगा न दे इसको
कहकर बेवफ़ा तुझे,
मुहब्बत को राख में दबा रखा
है।
ये तो नहीं कि कभी
बेचैन नहीं होता दिल मेरा
मगर देकर वफ़ा का नशा,
तूफ़ां को सुला रखा है।
दिल जलेगा, अश्क बहेंगे, चैन लुटेगा, लोग हँसेगे
न मुहब्बत का ज़िक्र
छेड़ ‘विर्क, इसमें क्या रखा है।
16 टिप्पणियां:
बहुत खूब ,लाजबाब
वाह
वाह !बहुत ख़ूब
ये तो नहीं कि कभी बेचैन नहीं होता दिल मेरा
मगर देकर वफ़ा का नशा, तूफ़ां को सुला रखा है।
वाह,क्या बात है। सादर।
आपकी लिखी रचना रविवार 17 मार्च 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-03-2019) को दोहे "होता है अनुमान" (चर्चा अंक-3275) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन फाउंटेन पैन का शौक और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
उम्दा बेहतरीन दर्द लिये गजल।
डर है वक़्त की हवा फिर से सुलगा न दे इसको
कहकर बेवफ़ा तुझे, मुहब्बत को राख में दबा रखा है।
बहुत लाजवाब.....
वाह!!!
बहुत ख़ूब दिलबाग विर्क जी. हफ़ीज़ जालंधरी के इस शेर से शायद आपको सुकून मिले -
क्यूँ हिज्र के नाले रोता है, क्यूँ दर्द के शिक़वे करता है,
जब इश्क़ किया तो सब्र भी कर, इसमें तो सभी कुछ होता है.
बहुत सुंदर...
बहुत बढ़िया।
वाह
bahut khoob
लाजवाब बहुत ही बढ़िया ,ग़ालिब की एक पंक्ति ध्यान में आ गई -है हमको उनसे वफा की उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
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