बुधवार, अक्टूबर 16, 2019

दिल की भी एक ज़ुबान है

पूरी कायनात हैरान है 
तू आज मेरा मेहमान है। 

वस्ल की यादें, प्यार की ख़ुशबू 
ख़ुशियों का सारा सामान है। 

कैसे याद रहा तुझे वर्षों तक 
इस गली में मेरा मकान है। 

इसे बेज़ुबां न समझो लोगो 
दिल की भी एक ज़ुबान है। 

दुआएँ असर करती हैं आख़िर 
या रब ! तू कितना मेहरबान है। 

आवारा दिल को दिया मक़सद 
मुझ पर ‘विर्क’ तेरा एहसान है।

दिलबागसिंह विर्क 
*****

6 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-10-2019) को   "सबका अटल सुहाग"  (चर्चा अंक- 3492)     पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
--
अटल सुहाग के पर्व करवा चौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

नीलांश ने कहा…

आत्मीय कविता

anita _sudhir ने कहा…

वाह बेहद खूबसूरत गजल

Rohitas Ghorela ने कहा…

वाह
बहुत खूब।
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉👉  लोग बोले है बुरा लगता है

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