सोमवार, सितंबर 23, 2024

सांख्य योग ( भाग - 1 )

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संजय राजा से कहे, अर्जुन हो लाचार। 
बैठा करुणा से भरा, डाल चुका हथियार ।। 1 ।।

उपदेश दिया कृष्ण ने, मत डालो हथियार।
तुझको है यह क्या हुआ, कैसे धरे  विचार ।। 2।।

कायरता को धारकर, खो देगा सम्मान। 
पात्र बनेगा नर्क का, पाएगा अपमान ।। 3।।

केशव से अर्जुन कहे, निकले जाते प्राण। 
गुरुवर मेरे सामने, कैसे छोड़ूँ बाण ।। 4।।

पितामह खड़े उस तरफ, उनसे बेहद प्यार। 
गोदी में खेला किया, अब कैसे दूँ मार ।। 5।।

पुत्र तात के हैं सभी, दुश्मन राजकुमार। 
फिर निश्चित यह भी नहीं, जीत मिले या हार ।। 6।।

जीता रण हमने अगर, तो भी होंगे क्लांत। 
निष्कंटक होगी धरा, चित्त न होगा शांत ।। 7।।

रण में कैसे दूँ बहा, अपनों का ही रक्त। 
यही सोचकर हे सखा!, मैं हो रहा विरक्त ।। 8 ।।

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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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7 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

प्रेरक ,सरल सहज भाषा में आपका प्रयास सराहनीय है।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २४ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

हार्दिक आभार आदरणीय

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Anita ने कहा…

सार्थक लेखन

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आभार आदरणीय

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आभार आदरणीय

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