सोमवार, सितंबर 16, 2024

अर्जुन विषाद योग ( भाग - 4 )

*****

कपटी कौरव हैं भले, हम तो हैं निष्पाप। 
इन दुष्टों को मारकर, हम क्यों भोगें पाप ।। 21 ।।

पागलपन वे कर रहे, सेना है निर्दोष। 
अहंकार में मस्त हैं, जरा न करते होश ।। 22 ।।

उनकी उन पर छोड़ दें, हम तो रखते ज्ञान। 
करता युद्ध विनाश है, मिलता न समाधान ।। 23 ।।

मधुसूदन हम जानते, सीधी-सी यह बात। 
भटकें रास्ता नारियाँ, युद्ध बिगाड़े जात ।। 24।।

दानव फिर तांडव करें, जब मिट जाए धर्म। 
जान बूझकर हम करें, कैसे ऐसा कर्म ।। 25 ।।

युद्ध नहीं थोपें कभी, शांति बनाए राज। 
बड़ी ज़रूरी बात है, सोचे सकल समाज ।। 26 ।।

भली-भाँति मैं सोचकर, डाल रहा हथियार। 
रण से अच्छा है यही, मुझको दें वे मार।। 27।।

संजय राजा से कहे, है अजीब व्यवहार। 
आकर इस रणक्षेत्र में, अर्जुन करे विचार।। 28 ।।

*****
*****
डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
*****

10 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

ज्ञानवर्धक, बेहद सराहनीय शृंखला।
सादर।
----
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आभार आदरणीय

Meena sharma ने कहा…

सरल सहज शब्दों में अर्जुन के विषाद की अभिव्यक्ति .

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

हार्दिक आभार आदरणीय

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आभार आदरणीय

Anita ने कहा…

सरल, सहज प्रवाहमयी भाषा

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आभार आदरणीय

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आभार आदरणीय

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...