बुधवार, दिसंबर 05, 2012

अग़ज़ल - 48

चंद दिनों में हादसे पर हादसा हो गया
तूने छोड़ दी वफा, मैं भी बेवफा हो गया ।


दिनो-दिन हालात बद से बदतर होते चले गए
जाने क्या खता हुई, क्यों नाराज खुदा हो गया ।


कोशिश तो की होती मसले का हल तलाशने की
बित्ते भर की गलतफहमी मीलों फासिला हो गया ।


खुशी मांगी, गम मिले, मुहब्बत की, नफरत पाई
क्या सोचा था हमने और क्या से क्या हो गया ।


टूटे दिल को समझा न पाए बातों से, आखिर
साकी बना लिया साथी, घर मैकदा हो गया ।


दोस्त बनाकर देखे "विर्क "वफा निभाकर देखी
अब अपनी धुन में रहना मेरा फलसफा हो गया ।


                   दिलबाग  विर्क                        
                     *********

4 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...
बहुत बढ़िया ......
लाजवाब शेर (अब अगज़ल में शेर तो होते हैं न??)
कोशिश तो की होती मसले का हल तलाशने की
बित्ते भर की गलतफहमी मीलों फासिला हो गया ।

बहुत खूब ..
अनु

yashoda Agrawal ने कहा…

प्यारी ग़ज़ल
सुबह सार्थक हुई
सादर

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर गज़ल

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कोशिश तो की होती मसले का हल तलाशने की
बित्ते भर की गलतफहमी मीलों फासिला हो गया ।

ये बीतते भर की गलती ही फासला पैदा कर देती है .... सुंदर गज़ल

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...