राजा संजय से कहे, मुझे सुनाओ हाल ।। 1।।
दिव्य दृष्टि से देखता, संजय पा आदेश ।
कौरव-पांडव सब खड़े, धर वीरों का भेष ।। 2।।
सेनाएँ हैं सामने, लड़ने को तैयार।
बड़े भयानक दृश्य का, होता है दीदार ।। 3।।
युवराज कहे द्रोण से, सेना बड़ी विशाल।
देखो ! द्रुपद पुत्र रचे, व्यूह बड़ा विकराल ।। 4।।
उनकी सेना में खड़े, काशीराज महान।
धृष्टकेतु है सामने, पीछे चेकीतान।। 5।।
पाँचों पांडव हैं खड़े, अस्त्र-शस्त्र ले हाथ।
वीर पिता समतुल्य जो, पुत्र खड़े हैं साथ ।। 6।।
अर्जुननंदन भी खड़ा, योद्धा खड़े अनेक ।
कृष्ण बना रथवान है, रणजेता प्रत्येक ।। 7 ।।
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पुस्तक - गीता दोहवली
8 टिप्पणियां:
क्या सुंदर लिखा है आपने ,लाज़वाब आगे की कड़ियों की प्रतीक्षा रहेगी।
जय श्रीकृष्ण।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २७ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बेहतरीन लिखा आपने।बधाई
एक लंबे समयांतराल पर | सुन्दर
अति सुंदर
हार्दिक आभार आदरणीय
हार्दिक आभार आदरणीय
हार्दिक आभार आदरणीय
हार्दिक आभार आदरणीय
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