इस अध्याय की शुरूआत धृतराष्ट्र के युद्ध का हाल जानने के प्रश्न से होती है, जिसके उत्तर में संजय बताता है कि दुर्योधन द्रोणाचार्य के पास जाकर पहले विपक्षी सेना और फिर अपनी सेना के बारे में बताता है। भीष्म पितामह शंखनाद करते हैं। उधर से कृष्ण प्रत्युत्तर में शंखनाद करते हैं। फिर सभी महारथी शंखनाद करते हैं। अर्जुन कृष्ण को रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले जाने को कहता है, जिससे वे सभी को देख सके, लेकिन बीच में आकर वह करुणा से भर उठता है और युद्ध की व्यर्थता की बात करता है। वह कहता है कि पापियों को मारकर वे निष्पाप कैसे रहेंगे? वह अब सिर्फ़ राज्य ही नहीं, तीनों लोक के राज्य को भी छोड़ने को तैयार है और हथियार डालकर बैठ जाता है।
पुस्तक - गीता दोहावली
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क
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