सोमवार, अप्रैल 30, 2018

धीरे-धीरे हो जाएगी आदत ज़ख़्म खाने की

मैं अदना-सा इंसां, सामने ताक़त ज़माने की 
फिर भी ख़्वाहिश है, आसमां का चाँद पाने की। 

कभी हमें भी नज़र उठाकर देखो तुम 
बड़ी तमन्ना है आपसे नज़र मिलाने की ।

कहीं ऐसा न हो, दम तोड़ दे ये दिल मेरा 
कब छूटेगी आदत तुम्हारी, मुझे सताने की। 

मौसमे-तपिश में सर्द हवाएं नहीं चला करती 
फिर भी ज़िंदा रखें हैं उम्मीद दिल बहलाने की। 

ये न पूछ कब तक रहेगा आशियाना सलामत 
हर तरफ़ हो रही कोशिशें, बिजलियाँ गिराने की। 

इब्तिदा-ए-इश्क़ है ‘विर्क’ इसलिए बेचैन हूँ 
धीरे-धीरे हो जाएगी आदत ज़ख़्म खाने की ।

दिलबागसिंह विर्क 
******

बुधवार, अप्रैल 25, 2018

ग़म क्यों हमसाया है सभी का ?


अब ये आलम है मैकशी का
भूल गया हूँ वुजूद ख़ुदी का ।

छलावे पे अटका हूँ इसलिए
दामन पकड़ न पाया ख़ुशी का।

टुकड़े-टुकड़े हो गया दिल मेरा
मुहब्बत खेल न था हँसी का ।

सपाट रास्तों की उम्मीद न कर
रुख बदलता रहे इस ज़िंदगी का।

पूछो, दरख़्त भी लगाया है कभी
शौक है जिन्हें छाँव घनी का ।

चलो विर्कमैं तो नादां ठहरा
ग़म क्यों हमसाया है सभी का ?

दिलबागसिंह विर्क 
******

बुधवार, अप्रैल 18, 2018

कहीं तो बहार होगी, कहीं तो चाँद चमका होगा

यह मुमकिन नहीं, हर शख़्स मुझ-सा तन्हा होगा 
कहीं तो बहार होगी, कहीं तो चाँद चमका होगा। 

जिसको सह जाए ये मासूम-सा दिल आसानी से 
मुझे नहीं लगता, कोई ग़म इतना हल्का होगा ।

सकूं की तलाश में मुसल्सल बेचैन होता गया मैं 
मुक़द्दर से लड़े जो, क्या कोई मुझ-सा सरफिरा होगा।

तुम्हारे जश्न में कैसे शामिल होंगे वो परिंदे 
इन बारिशों में जिनका आशियाना बिखरा होगा 

उसे तो ख़बर होगी, इसको संभालना आसां नहीं 
जिसका भी दिल बच्चे की तरह मचला होगा ।

वक़्त ही बताया करता है आदमी की असलियत 
चेहरा देखकर न कहो ‘विर्क’ वो कैसा होगा ।

दिलबागसिंह विर्क 
*****

मंगलवार, अप्रैल 03, 2018

दो क़दम तुम चलना

कोई ज़रूरी तो नहीं हर बार फिसलना 
कोशिशों से ही मुमकिन होगा संभलना । 

अगर फ़ासिले दिलों के दूर करने हैं तो 
दो क़दम मैं चलूँगा, दो क़दम तुम चलना। 

घर जला दो किसी का, ये तुम्हारी मर्ज़ी 
वरना काम है इस शमा का तो बस जलना। 

बेक़रार क्यों हुए तुम ढलती शाम देखकर 
फिर सवेर होगी, बताता है दिन का ढलना।

तुम उसे मान लो ख़ुदा की इनायत ही 
जो रंग लाए वक़्त का करवट बदलना ।

आफ़तों से ‘विर्क’ कब तक बचेंगे हम 
ख़ुद-ब-ख़ुद सीख जाएगा दिल बहलना।

दिलबागसिंह विर्क 
*****
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...