मंगलवार, मार्च 26, 2013

अग़ज़ल - 53

हर गम हँसके उठाया है हमने तेरे गम के सिवा 
निभाई हैं कसमें, तुझे भुला पाने की कसम के सिवा ।
आती है जब भी याद तेरी मेरा इम्तिहां होता है 
संभाल ही लेते हैं खुद को, आँख नम के सिवा ।

तेरा जाना मुझ पर कुछ ऐसा असर छोड़ गया 
खामोश हो गया हूँ मैं, बोलती हुई कलम के सिवा ।

और कुछ भी तो नहीं रहा अब मेरे पागल दिल में 
हसीं लोग बेवफा होते हैं, इस एक वहम के सिवा ।

पता नहीं क्यों अभी तक बाकी है इससे लगाव मेरा 
ठुकरा दिया है हर किसी को, वफा की रस्म के सिवा ।

तन्हाइयों में गर विर्क रह पाओ तो बेहतर होगा 
जमाने की महफिल कुछ नहीं, दास्ताँ-ए-अलम के सिवा ।

दिलबाग विर्क 
*********
दास्ताँ-ए-अलम  -  दुःख की कहानी 
********

मंगलवार, मार्च 12, 2013

अग़ज़ल - 52

उडकर न सही, पैदल चलकर ही 
पा ही लेंगे मंजिल, कभी-न-कभी ।

खिलखिलाकर हंसो, जब भी वक्त मिले 
यहाँ बड़ी मुश्किल से मिले है ख़ुशी ।

जी रहे हैं बेपरवाही से देखो 
क्या रंग लाएगी ये आवारगी ।

प्यार का मुकाम भी दिलाती है गर 
जलाती है दिल को दिल की लगी ।

या रब ! किसी को बेबस न बना 
हर शै से बुरी है ये बेबसी ।

न वफा है पास और न ही गैरत 
कितना खोखला है आज का आदमी ।

मुद्दे विर्क इससे और उलझ जाएंगे 
हर मसले को न बनाओ मजहबी ।

दिलबाग विर्क 
*********

शुक्रवार, मार्च 08, 2013

सम्मान स्त्रीत्व का ( चोका )

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ - 
होती गोष्ठियाँ
दिए जाते भाषण
हालात वही
लुटती महिलाएँ
सरे-बाजार
महिलाओं के दिन ।
बदलो सोच
बदल दो हालात
न कहो देवी
न अबला ही मानो
समझो तुम
औरत को औरत ।
मिटाओ भेद
अपनाओ समता
सिर्फ समता 
है सम्मान स्त्रीत्व का
बिना इसके
अधूरे आयोजन
न अर्थ कोई
महिला दिवस का ।
छोड़ो दिखावा
हों प्रयास सार्थक
यही फर्ज़ सबका ।

******

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...