बुधवार, जुलाई 29, 2015

मैं तुझे गुनगुनाता हूँ

साँस नहीं लेता, मैं तुझे अर्घ्य चढ़ाता हूँ 
गीत नहीं गाता, मैं तुझे गुनगुनाता हूँ । 
     फूलों में तू है 
          बूंदों में तू है 
               तेरी है धरती 
                    तेरा है नभ भी 
ज़र्रे-ज़र्रे में तेरा वजूद पाता हूँ 
गीत नहीं गाता, मैं तुझे गुनगुनाता हूँ ।
     सुख-दुःख आते हैं 
              आकर जाते हैं 
                   ठहरा कब कुछ है 
                          तेरा सब कुछ है 
जीवन जो पाया, उसकी ख़ुशी मनाता हूँ 
गीत नहीं गाता, मैं तुझे गुनगुनाता हूँ । 
      मैं हूँ दीवाना 
             जैसे परवाना 
                    जलना आदत है 
                           इश्क़ बुरी लत है 
फूला न समाऊँ, जब तेरा कहलाता हूँ 
गीत नहीं गाता, मैं तुझे गुनगुनाता हूँ । 

                    दिलबाग विर्क 
                     *********
मेरे और कृष्ण कायर द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज़्बात " में से  

बुधवार, जुलाई 22, 2015

कसक, जलन, गम का मौसम न गया

दिखते हैं यहाँ पर हमदम बहुत 
मगर देते हैं लोग जख्म बहुत | 
दिखाकर ख़ुशी की झलक अक्सर 
दिए हैं इस ज़िन्दगी ने गम बहुत | 

वो बेवफ़ा था, चला गया छोड़कर 
फिर भी उसके लिए रोए हम बहुत | 

हम सलामत हैं, ये अजूबा है 
करने वाले ने किए थे सितम बहुत | 

कसक, जलन, गम का मौसम न गया 
आए और चले गए मौसम बहुत | 

मुकद्दर से ' विर्क ' कब तक लड़ता 
इस राह में थे पेचो - ख़म बहुत | 

दिलबाग विर्क 
*****
मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज़्बात " से 

बुधवार, जुलाई 08, 2015

ग़म का दरवान

कोई अजूबा तो नहीं, न हो बेमतलब हैरान 
इश्क़ के सिर पर होता है हिज्र का आसमान । 
पहलू में बैठा हो महबूब और फ़ुर्सत भी हो 
कभी-कभार होती है ज़िंदगी इतनी मेहरबान । 

शायद ख़ुदा देखना चाहता है हौंसला मेरा 
ख़ुशियों के दरवाजे पर मिले ग़म का दरवान । 

तन्हाई को मेरे पास फटकने ही नहीं दिया 
किया तेरी याद ने मुझ पर कितना बड़ा अहसान । 

किसी मुजरिम की तरह कटघरे में खड़े रहे 
और हमारी किस्मत हमें सुनाती रही फ़रमान । 

फ़रेब हैं यहाँ का हुनर, फ़रेब ही यहाँ का दस्तूर 
तुम भी सजा लेना ' विर्क ' कोई फ़रेब की दुकान । 

दिलबाग विर्क 
*****

मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज्बात " से 

बुधवार, जुलाई 01, 2015

इतनी हल्की मेरी चाहत नहीं

माना तुझे अब मुझसे उल्फ़त नहीं 
फिर भी मैं कर सकता नफ़रत नहीं । 
तेरा चेहरा खिला रहे सदा ही 
इसके सिवा कोई भी हसरत नहीं । 

बदले में माँगे तुझसे क़ीमत 
इतनी हल्की मेरी चाहत नहीं । 

बेहतर है, खुद ही संभलकर रहें 
लोगों को किसी की मुरव्वत नहीं । 

तेरे ग़म में इतना उलझा हूँ मैं 
तुझे सोचने तक की फ़ुर्सत नहीं । 

मेरी वफ़ा ' विर्क ' मेरा साथ छोड़े 
होगी इससे बढ़कर क़यामत नहीं । 

दिलबाग विर्क 
*****
मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज़्बात " से 


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