आग उगलें शब्द
फड़कने लगें बाजू
कविता पढ़कर
ज़रूरी तो नहीं
अल्फ़ाज़ हर बार
प्रेरित करें लोगों को
बंदूक उठाने के लिए
कब ज़रूरी है यह
विरोध की भाषा का
बन्दूकों से ही बोला जाना
कहाँ ज़रूरी है
परिवर्तन के लिए
काफ़ी होता है
विचारों की एक लहर का उठाना
मन-मस्तिष्क में
हमें तो करनी है
विचारों की खेती
क्योंकि
बंदूकें तो
कभी-कभार लिखती हैं
विचार अक्सर लिखते हैं
परिवर्तन की कहानी |
दिलबागसिंह विर्क
******
2 टिप्पणियां:
सुंदर अति सुंदर
परिवर्तन के लिए
काफ़ी होता है
विचारों की एक लहर का उठाना
मन-मस्तिष्क में ....बिल्कुल सही लिखा आपने।
एक टिप्पणी भेजें