बुधवार, अप्रैल 06, 2016

परिवर्तन के लिए

आग उगलें शब्द 
फड़कने लगें बाजू 
कविता पढ़कर
ज़रूरी तो नहीं 

अल्फ़ाज़ हर बार 
प्रेरित करें लोगों को 
बंदूक उठाने के लिए 
कब ज़रूरी है यह 

विरोध की भाषा का 
बन्दूकों से ही बोला जाना 
कहाँ ज़रूरी है 

परिवर्तन के लिए 
काफ़ी होता है 
विचारों की एक लहर का उठाना 
मन-मस्तिष्क में 

हमें तो करनी है 
विचारों की खेती 
क्योंकि 
बंदूकें तो 
कभी-कभार लिखती हैं 
विचार अक्सर लिखते हैं 
परिवर्तन की कहानी |

दिलबागसिंह विर्क 
******

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

सुंदर अति सुंदर

रश्मि शर्मा ने कहा…

परिवर्तन के लिए
काफ़ी होता है
विचारों की एक लहर का उठाना
मन-मस्तिष्क में ....बि‍ल्‍कुल सही लि‍खा आपने।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-04-2020) को   "रोटियों से बस्तियाँ आबाद हैं"  (चर्चा अंक-3686)     पर भी होगी। 
-- 
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
-- 
कोरोना को घर में लॉकडाउन होकर ही हराया जा सकता है इसलिए आप सब लोग अपने और अपनों के लिए घर में ही रहें। आशा की जाती है कि अगले सप्ताह से कोरोना मुक्त जिलों में लॉकडाउन खत्म हो सकता है।  
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
--
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बहुत ही सुंदर ! वाह

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