बुधवार, जून 24, 2015

पत्थरों में ख़ुदा पाना है

इस दिल का दर्द क्या तूने कभी जाना है 
बेचैन है ये , तन्हा है , दीवाना है | 

मुहब्बत गुजरे ऐसी कैफ़ियत से अक्सर 
एक तरफ महबूब, दूसरी तरफ जमाना है | 
इबादत में हर्फ़ दुई का न आने देना 
अगर तुम्हें पत्थरों में ख़ुदा पाना है | 

तमन्ना है मुहब्बत का मुक़ाम पाने की 
इसके लिए ज़िंदगी को दाँव पर लगाना है 

बड़ी बेसब्री से है इंतज़ार उनका 
उनसे कुछ सुनना, उन्हें कुछ सुनाना है | 

मक़सद जीने का पाने के लिए ' विर्क ' हमें 
किसी का होना, किसी को अपना बनाना है |

दिलबाग विर्क 
*****
मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज़्बात " से  

बुधवार, जून 17, 2015

रोग बड़ा पुराना हो गया

धड़कने हुई उधार जब से दिल दीवाना हो गया 
ज़िंदगी के नाम फिर ग़म का फ़साना हो गया । 

पहले सौग़ात समझते रहे मुहब्बत की मर्ज़ को 
अब क्या होगा इलाज, रोग बड़ा पुराना हो गया । 
ख़ुद को बचाने की मैंने की थी बड़ी ही कोशिश 
क्या करें, उनका हर अंदाज़ क़ातिलाना हो गया । 

कितनी नाज़ुक लड़ी से बंधे थे रिश्तों के मोती 
कल तक जो अपना था, वो आज बेगाना हो गया । 

यूँ तो रोज़ आसमां पर सजती है रात चाँदनी 
मगर दिल का चाँद देखे एक ज़माना हो गया । 

उन्होंने बेवफ़ा दिल के इरादों को दिया अंजाम 
और मज़बूरियों का क्या ख़ूब बहाना हो गया । 

' विर्क ' मेरा नसीब भी बेचारा अब क्या करता 
बिजलियों की शाख़ पर जब आशियाना हो गया । 

दिलबाग विर्क 
*****
मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज्बात " से 

बुधवार, जून 10, 2015

दिल दिल था, क़िला नहीं

मुहब्बत की थी जिस पत्थर से, उस से गिला नहीं 
इस उजड़े हुए चमन में फूल ख़ुशी का खिला नहीं । 

एक-सा ही दौर गुजर रहा है कई मुद्द्तों से 
यहाँ पतझड़ और बहार में कोई फ़ासिला नहीं । 
खंडहर बना दिया है बेवफ़ाई के नश्तरों ने 
टूटना तो था ही इसे, दिल दिल था, क़िला नहीं । 

खाकर ठोकरे ज़माने की भीड़ से जुदा हो गए 
ग़म में तन्हा ही चले हैं, संग कोई क़ाफ़िला नहीं । 

शायद सफ़र ही है फ़साना मेरी ज़िंदगी का 
चाहा जिस किसी साहिल को, वो मुझे मिला नहीं । 

' विर्क ' किस पर लगाऊँ इल्ज़ाम मैं ख़स्तादिली का 
ये ग़ुरबत है नसीब की, मुहब्बत का सिला नहीं । 

दिलबाग विर्क 
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मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज़्बात " में से 
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