बुधवार, जून 17, 2015

रोग बड़ा पुराना हो गया

धड़कने हुई उधार जब से दिल दीवाना हो गया 
ज़िंदगी के नाम फिर ग़म का फ़साना हो गया । 

पहले सौग़ात समझते रहे मुहब्बत की मर्ज़ को 
अब क्या होगा इलाज, रोग बड़ा पुराना हो गया । 
ख़ुद को बचाने की मैंने की थी बड़ी ही कोशिश 
क्या करें, उनका हर अंदाज़ क़ातिलाना हो गया । 

कितनी नाज़ुक लड़ी से बंधे थे रिश्तों के मोती 
कल तक जो अपना था, वो आज बेगाना हो गया । 

यूँ तो रोज़ आसमां पर सजती है रात चाँदनी 
मगर दिल का चाँद देखे एक ज़माना हो गया । 

उन्होंने बेवफ़ा दिल के इरादों को दिया अंजाम 
और मज़बूरियों का क्या ख़ूब बहाना हो गया । 

' विर्क ' मेरा नसीब भी बेचारा अब क्या करता 
बिजलियों की शाख़ पर जब आशियाना हो गया । 

दिलबाग विर्क 
*****
मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज्बात " से 

7 टिप्‍पणियां:

Tayal meet Kavita sansar ने कहा…

बहुत खूब........ उम्दा

Nitish Tiwary ने कहा…

वाह क्या बेहतरीन ग़ज़ल है..मतलब आपने तो बिल्कुल हिला कर रख दिया.
मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
http://iwillrocknow.blogspot.in/

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत बढ़िया

रश्मि शर्मा ने कहा…

शानदार गजल..लाजवाब शेर

Unknown ने कहा…

सुन्दर रचना , बेहतरीन अभिब्यक्ति

कभी इधर भी पधारें

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

sundar rachna :)

वाणी गीत ने कहा…

बिजलियों की शाख के नशेमन खाक होना था!
अच्छी गज़ल!

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