बुधवार, मार्च 18, 2020

काग़ज़ के खेत


ग़म बोकर
सींचा आँसुओं से
कहकहों से सींची
ख़ुशियों की क्यारी
पकी जब खेती
शब्द उगे
नज्म, ग़ज़ल, गीत बनकर
बीज थे जुदा-जुदा पर
फसल की ख़ुशबू एक-सी थी
ये करिश्मा शायद
काग़ज़ के खेत का है
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बुधवार, मार्च 11, 2020

ज़िंदगी

जीवन 

उथले पानी में 
बीता है 
जीवन सारा 
और अक्सर 
हमने बात की है 
गोताखोरी की 

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ज़िंदगी – 1 

पक्षियों का कलरव 
भँवरों का गुंजार 
फूलों का खिलना 
हवा का चलना 
है ज़िंदगी
यह अर्थ नहीं रखती 
महज काटने में 
इसे तो जीया जाता है 
चहककर 
महककर 

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ज़िंदगी – 2

ज़िंदगी की परतों के 
भीतर ही कहीं 
छुपी रहती ज़िंदगी 
जैसे छुपा हो 
हारिल कोई 
हरे पत्तों के बीच 

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